बुधवार, 28 दिसंबर 2011

विवेकानन्द के सूत्र - 1

लक्ष्य के प्रति सजग रहो

अकर्मण्यता, निराशा, आलस्य और शिथिलता - ये सभी उदभव, विकास और उन्नति के सबसे बड़े बाधक तत्व हैं। अनेक लोग बिना कोर्इ कर्म किये बस केवल निरर्थक बोलते रहते हैं। बड़ी-बड़ी बातें, बड़े-बड़े दावे, बड़ी-बड़ी प्रतिज्ञाएँ। केवल बातें करने से, केवल दावे करने से या केवल प्रतिज्ञा बोल देने से कुछ होने वाला नहीं है। जीवन में सफलता पाने के लिए आवश्यक है सक्रिय कर्म और विचार की क्रियानिवति। एक सफल व्यकित और और एक असफल व्यकित के जीवन में यही महत्वपूर्ण अन्तर है। केवल विचार उदघोषित करने वाले कभी सफल नहीं होते, सफलता उन्हें मिलती है जो उन विचारों को क्रियानिवत करने में सप्रयास जुट जाते हैं।

स्वामी विवेकानन्द ने सम्पूर्ण विश्व के समक्ष उपनिषद का यह सूत्र प्रतिपादित किया - ''उतितष्ठत जाग्रत प्राप्यवरानिनबोधत।।'' अर्थात 'उठो! जागो! और लक्ष्य प्रापित तक रूको मत!!' वास्तव में युवा पीढ़ी को अपने जीवन में सफलता के लिए जिस सूत्र की सर्वाधिक आवश्यकता है, वह यही सूत्र है। वरन यह तो जीवन लक्ष्य की प्रापित का महामंत्र है।

'उठो!' - अर्थात केवल बातें मत करो, केवल विचार की घोषणा मत करो, बलिक अपने जीवन के लिए श्रेष्ठ-सार्थक लक्ष्य को चुनो और कुछ कर्म करने के लिए तैयार हो जाओ। 'जागो!' - अर्थात लक्ष्य प्रापित के लिए किन प्रयत्नों की आवष्यकता है, कौनसी योजना उपयुक्त होगी, मार्ग में आने वाले अवरोध और उन्हें दूर करने के उपाय क्या रहेंगे, इन सब के प्रति सचेत रहो, चैतन्य रहो। 'लक्ष्य प्रापित तक रूको मत!!' - अर्थात एक बार लक्ष्य तय कर लिया, जीवन का सार्थक मार्ग चुन लिया, आगे बढ़ने की योजना बना ली, तो फिर बिना रूके, बिना थके, चाहे कितनी भी बाधाएँ जाएँ, सबको पार करते हुए निराशा और आलस्य को दूर रखते हुए आगे बढ़े चलो, बढ़े चलो। यदि हमने जीवन में इस सूत्र को अपना लिया तो जीवन-ध्येय में सफलता सुनिशिचत ही है।

एक व्यकित समुंद्र में नहाने के लिए जाता है, किन्तु समुंद्र में उठती ऊँची-ऊँची लहरों को देखकर रूक जाता है। किनारे पर बैठकर सोचता है कि लहरों को शांत होने दो फिर आराम से नहा लेगे। प्रात: से सांय हो जाती है, पर लहरें शांत होने के बजाय और ऊँची ही होती जाती हैं। तब वह बिना नहाये चुपचाप लौट जाता है। जरा सोचिये, वह व्यकित क्या कभी भी समुंद्र में नहा पाएगा? आप उत्तर पाएंगे-'नहीं' यदि समुंद्र में नहाना है तो ऊँची लहरों का सामना करना ही होगा। ठीक इसी तरह जीवन में लक्ष्य को यदि प्राप्त करना ही है तो फिर मार्ग में आने वाली बाधाओं से डरकर किनारे बैठने के बजाय डटकर सामना करते हुए आगे बढ़ते रहना होगा।

भारत के अनेक ऐसे नेता थे, जिनके मातृभूमि के प्रति प्रेम, श्रद्धा, समर्पण और आजादी के लक्ष्य के लिए दृढ़ संकल्प ने ही हमें स्वाधीनता दिलायी है। इन्हीं में से एक नाम है- सुभाषचन्द्र बोस नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जब भारत की आजादी का संलल्प लेकर निकल पड़े थे, तब उनके साथ चन्द युवा साथी ही थे। किन्तु, विचार के पक्के सुभाषचन्द्र बोस ने केवल असंभव लगने वाले 'आजाद हिन्द फौज' जैसे विषाल संगठन को खड़ा किया, वरन विष्व के कर्इ देषों को अपने समर्थन में तैयार कर भारत की स्वतंत्रता में महत्ती भूमिका निभार्इ। नेताजी भी स्वामी विवेकानन्द के अनुयायी थे और अक्सर उनके चित्र के समक्ष खड़े होकर प्रेरणा और ऊर्जा प्राप्त किया करते थे।

साधारण व्यकितत्व वाले वैज्ञानिक प्रो. नारायण मूर्ति अपने दृढ़़संकल्प के बल पर ही भारत के सबसे बड़े सूचना तकनीक प्रतिष्ठान 'इन्फोसिस' के संस्थापक बने और एषिया के पचास सर्वाधिक शकितषाली व्यकितयों में स्थान हासिल किया। आपने इन्फोसिस की प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय शाखा यू.एस.. में खोलकर भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की। ध्येय मार्ग पर बढ़ते हुए विष्वमंच पर अनेक उल्लेखनीय सम्मान प्राप्त किये।

एक साधारण गरीब परिवार में पले डा. .पी.जे. अब्दुल कलाम लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता के कारण ही भारत के पहले सेटेलाइट एस.एल.वी.-3 और 'अगिन' 'पृथ्वी' जैसी शकितषाली मिसाइलों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कर 'मिसार्इल मैन' बन गए। सार्थक कर्म के प्रति निष्ठा के कारण ही पदमभूषण, पदमविभूषण और सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत डा. .पी.जे. अब्दुल कलाम को भारत के महामहिम राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ।

चौंतीस वर्ष की अल्पायु में ही जे.आर.डी. टाटा 'टाटा एण्ड सन्स' के अध्यक्ष बन गये, जिसने चौदह कम्पनी से शुरू करके आज 95 से अधिक कम्पनियों का विषाल साम्राज्य स्थापित कर लिया है। यह सब ध्येय के प्रति कर्मनिष्ठा का ही परिणाम है। पदमविभूषण से सम्मानित टाटा ने समाज के प्रति दायित्व-बोध के कारण ही एषिया के प्रथम 'केंसर अस्पताल' और भारत के युवाओं को षिक्षा के उच्चतम अवसर प्रदान करने के उद्धेष्य से अनेक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना का गौरव हासिल किया।

ऐसे अनेकों उदाहरण होंगे जिनकी सफलता के पीछे यही सूत्र है - 'उठो! जगो! और लक्ष्य प्रापित तक रूको मत!!' स्वामी विवेकानन्द ने यह भी कहा है - ''हम तोते की तरह कर्इ बातें बोलते रहते हैं, पर उन्हें कभी करते नहीं। केवल बातें करना और कुछ करना-यह हमारी आदत हो गर्इ है। इसका कारण क्या है? शारीरिक क्षीणता। इस प्रकार का क्षीण मसितष्क कुछ भी करने में अक्षम है। हमें इसे सषक्त बनाना है।'' अभी भी समय है। बातें करना छोड़कर अपने जीवन का सार्थक लक्ष्य निषिचत करो और उसे पाने के लिए सजगता के साथ निष्चय पूर्वक आगे बढ़ो। सफलता प्रतीक्षा कर रही है।

-उमेश कुमार चौरसिया

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